इससे पहले कि सांस थम जावे...

           किसी दमे के रोगी को क्या कभी आपने गौर से देखा है सांस का मामूली कतरा शरीर में ले पाने की कोशिश की उसकी छटपटाहट या तो स्वयं भुक्तभोगी समझ पाता है या फिर कुछ प्रतिशत में उसके वे परिजन जो उसके बहुत निकट रहने वाले होते हैं । स्थिति बिगडने पर बार-बार कृत्रिम उपकरणों की मदद से भी जब सांस लेना दूभर हो जाता है तो परिजनों के पास हजारों रु. प्रतिदिन के कमरतोड खर्च को झेलते हुए फिर पीडित को वेन्टीलेटर पर रखवाकर ठीक होने का प्रयास करना ही उपचार का अन्तिम विकल्प बचता है और अधिकांश मामलों में पीडित को तब भी स्वयं सांस लेने में सक्षम बन पाने की बनिस्बत सांस खोकर सीधा अन्तिम यात्रा पर ही प्रस्थान करना पडता है ।


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ऐसा प्रायः इसलिये होता है कि सामान्य जीवन में हम सभी छोटे-छोटे सांस लेकर ही जीवित रहने के अभ्यस्त होते हैं । जिससे फेफडों की कुल क्षमता के मात्र 25% हिस्से तक तो आक्सीजन की आपूर्ति बनी रहती है लेकिन शेष 75% हिस्सा लगभग निष्क्रिय रहने के कारण धीरे-धीरे रोग की चपेट में आने लगता है जिससे शरीर में खांसीब्रोंकाईटिस और टी. बी. जैसे रोगों के साथ ही फेफडों में ब्लाकेज जैसी लाइलाज बीमारियां खतरनाक सीमा तक पैर पसारती चली जाती हैं । 


           इस स्थिति से बचने का एकमात्र सरलसुलभ और बिल्कुल सस्ता तरीका होता है सांसों को पूरी गहराई तक लेने व धीरे-धीरे वापस छोडने की प्रक्रिया याने प्राणायाम । यदि हम प्रतिदिन 15-20 मिनीट का समय निकालकर जहाँ हैं वहीं ध्यानस्थ मुद्रा में बैठकर मात्र अपनी पूरी क्षमता से अधिक से अधिक गहरी सांस शरीर में अन्दर तक खींचकरयथासम्भव कुछ पल उसे शरीर में रोककर और फिर थोडा धीमी गति से जैसे रुकते हुए से उस सांस को बाहर छोडते हुए फिर-फिर इसी क्रम को दोहराते चले जावें तो फेफडों की अन्दरुनी क्षमता सुदृढ व मजबूत बनी रहेगी और तब आप इस किस्म की किसी भी बीमारी से लम्बे समय तक सुरक्षित रह सकेंगे ।

          
सांस लेने व छोडने के विभिन्न क्रम से शरीर को स्वस्थ बनाये रखने के इस प्रयास को ही प्राणायाम के नाम से जाना जाता है । शरीर के विभिन्न अवयवों को इस माध्यम से पूर्ण स्वस्थ रखने के लिये योग विधा के जानकार मनीषियों ने इसमें मुख्य सात प्रकार के क्रम निर्धारित किये हैं जिन्हे सरल शब्दों में इस प्रकार समझा जा सकता है-


          1.  भस्त्रिका प्राणायाम - दोनों नासिका छिद्रों से वेगपूर्वक गहरी सांस अन्दर तक खींचकर वेगपूर्वक ही बाहर की ओर वापस फेंक देनायह भस्त्रिका प्राणायाम कहलाता है । पेट तक नहीं सिर्फ सीने में पूरी क्षमता से श्वास भरकरवापस छोडते हुए इसे आप प्रतिदिन 3 से 5 मिनिट तक या लगभग 25 बार लगातार कर सकते हैं और यदि आप ह्रदय रोग से पीडित हैं तो आप इन्हें धीमी गति से करके भी ये लाभ प्राप्त कर सकते हैं-
          
लाभ- सर्दी-जुकामएलर्जीश्वासरोगनजलासाईनसदमा व समस्त कफ रोगों से बचाव होता हैफेफडे मजबूत बनते हैंथायराईड व टांसिल्स जैसे गले के रोग दूर होते हैंशरीर से विषाक्त व विजातीय पदार्थ दूर होते हैंरक्त शुद्ध व रक्त परिभ्रमण सुव्यवस्थित होता है और ह्रदय व मस्तिष्क को शुद्ध प्राणवायु मिलने से शरीर को आरोग्य लाभ होता है ।


           2.  
कपालभाति प्राणायाम - श्वास को अन्दर भरें बगैर ही तेज गति से लगातार बाहर की ओर फेंकते चले जाने की प्रक्रिया कपालभाति प्राणायाम कहलाती हैइसमें जो श्वास स्वमेव शरीर में आती व रहती है उसे ही हम लगातार बाहर की ओर फेंकते चले जाते हैं और ये प्रक्रिया इतनी तेजी से भी संभव है कि आप इसे 1 मिनिट में 60 से भी अधिक बार तक आसानी से कर सकते हैं । इसके लिये भी निर्धारित समय सीमा 3 से 5 मिनिट तक मानी जा सकती है । इस अवधि में भी प्रारम्भ में आपको थकान महसूस होने पर बीच-बीच में रुक-रुक कर इस अभ्यास की नियमितता बनाये रखी जा सकती है । कुछ लोगों को इसके अभ्यास के प्रारम्भिक दौर में कमर या पेट में हल्का दर्द महसूस हो सकता है जो इसके अभ्यास की नियमितता से बन्द हो जाता है । इसके अभ्यास से हमारे शरीर को ये लाभ मिलते हैं-
           
लाभ- मुखमण्डल पर ओजतेजआभा और सौन्दर्य के विकास के साथ ही दमाश्वासएलर्जी व साइनस जैसे रोगह्रदयमस्तिष्क व फेफडों से सम्बन्धित सभी रोग और मोटापाशुगरकब्जकिडनी व प्रोस्ट्रेट से सम्बन्धित सभी रोग दूर होते हैं । मन शांत व प्रसन्न रहने के कारण डिप्रेशन जैसी समस्याओं से मुक्ति मिलती है । आंतों को सबल बनाने हेतु ये सर्वोत्तम प्राणायाम माना जाता है ।


           3.  
बाह्य प्राणायाम - ध्यानस्थ मुद्रा में स्थिर बैठकर श्वास अन्दर खींचकर पूरी सांस बाहर निकाल दें और गुदाद्वार को संकुचित रखते हुएपेट को अन्दर की ओर खींचकर (सिकोडकर) व गर्दन को कंठकूप से चिपकाकर जितने देर श्वास रोककर इस स्थिति में रुकना संभव हो सके रुकें,  और जब श्वास लेना आवश्यक लगने लगे तब श्वास ले लें व सामान्य अवस्था में आने के बाद पुनः इसी क्रम को दोहराएं । सामान्य स्थिति में इस बाह्य प्राणायाम की 3 आवृत्ति प्रतिदिन के लिये पर्याप्त मानी जाती है । कुछ लोगों को प्रारम्भ में इससे पेट या शरीर के रोगग्रस्त भाग में हल्का दर्द महसूस हो सकता है जो अभ्यास की नियमितता से जाता रहता है । इस बाह्य प्राणायाम से शरीर को निम्न लाभ विशेष रुप से मिलते हैं-
           
लाभ- सभी पेट रोगस्वप्नदोष व शीघ्रपतन की समस्या इससे दूर होती है । जठराग्नि प्रदीप्त होती है । मन की चंचलता दूर होकर बुद्धि व विचार शक्ति इससे सूक्ष्म व तीव्र होती है । 


           4.  
अनुलोम-विलोम प्राणायाम - ध्यानस्थ मुद्रा में सीधे बैठकर हाथों को चेहरे के करीब लाकर सहज मुद्रा में दांये हाथ से अंगूठे के द्वारा दांयी ओर के नासिका छिद्र को बन्द करके नाक के बांये छिद्र से धीरे-धीरे श्वास अन्दर भरें । श्वास पूरा अन्दर भर चुकने पर बीच की व अनामिका (रिंग फिंगर) उंगली से नाक के बांये स्वर को बन्द करके दांई ओर के नासिका छिद्र से आप इस श्वास को बाहर निकाल दें उसके बाद यही प्रक्रिया दांई ओर के नासिका छिद्र से श्वास अन्दर भरकर बांई ओर के नासिका छिद्र से बाहर निकालकर इसे दोहराते चलें । इसे भी आप अपनी सुविधा अनुसार 3 से 5 मिनिट तक प्रतिदिन करते रह सकते हैं और एक मिनिट में यह प्रक्रिया 25 बार तक दोहराई जा सकती है । इस प्राणायाम के माध्यम से हमारे शरीर को निम्न लाभ प्राप्त होते हैं-

           लाभ- इस प्राणायाम से शरीर को होने वाले लाभों का उल्लेख कम शब्दों में नहीं किया जा सकता । यह माना जाता है कि सर्वाधिक लाभ प्राणायाम में शरीर को कपालभाति के साथ ही अनुलोम-विलोम प्राणायाम से ही मिलते हैं । संक्षिप्त में हम यूं समझ सकते हैं कि उपर दर्शित सभी लाभों का रिपिटेशन इसके माध्यम से होने के साथ ही ह्रदय व फेफडों की शिराओं में आये ब्लाकेज इसके 3-4 माह के अभ्यास से 50% से भी अधिक धीरे-धीरे खुल जाते हैं । कोलेस्ट्राल व ट्राइग्लिस्राइड्स की अनियमितताएं दूर हो जाती हैं । इसके माध्यम से शरीर की समस्त नस-नाडियां शुद्ध हो जाने से नकारातमक चिंतन समाप्त होकर सकारात्मक विचार बढने लगते हैं और शरीर पूर्ण स्वस्थकांतिमय व बलिष्ठ बनता है ।


          5.  
भ्रामरी प्राणायाम - फेफडों में गहराई तक सांस अन्दर भरकर मध्यमा (बडी) उंगली से आंखेंव अंगूठों से दोनों कानों को बन्द करके सिर्फ गले से 'sम्'  नाद का उच्चारण भंवरे के गुंजन सी शैली में करते हुए इस श्वास को धीरे-धीरे बाहर छोड दें । पुनः इस प्रक्रिया को दोहराते हुए कम से कम तीन बार इस भ्रामरी प्राणायाम को नियमित करें ।
        
लाभ- भ्रामरी प्राणायाम करते रहने से मानसिक तनावउत्तेजनाहाई ब्लड-प्रेशरह्रदयरोग व मन की चंचलता दूर होती है । 'sम्रुप में इस अवधि में ईश्वर-ध्यान भी इस तरीके से हो जाता है ।


           6.  
ओंकार जप प्राणायाम - इस प्राणायाम के द्वारा हम शरीर की स्थिर क्षमता बढाने के साथ ही अध्यात्म से जुडने का आनन्द ले पाते हैं । एक मिनिट के 60% हिस्से में हम अत्यन्त शांति से धीमी गति में 'शब्द का मन ही मन उच्चारण करते हुए सांस को शरीर में अन्दर की ओर बिना अतिरिक्त प्रयास के उसकी सामान्य गति से जाने दें और शेष 40% हिस्से में 'म्का उच्चारण मन ही मन करते हुए इस श्वास को बाहर की ओर आने दें । एक मिनिट में सिर्फ एक सांसगति ऐसी कि यदि नाक के आगे रुई का टुकडा भी रखा हो तो वह न हिल पावे । तीन बार इसकी भी नियमितता बनाये रखने का अभ्यास बनाने का प्रयास करें ।


          7.  
नाडी शोधन प्राणायाम - नाडी शोधन प्राणायाम के लिये अनुलोम - विलोम प्राणायाम के समान ही दांई ओर के नासिका छिद्र को बन्द रखकर बांई ओर के नासिका छिद्र से धीमे-धीमे श्वास अन्दर भरें । पूरा श्वास अन्दर भर चुकने पर मूलबंध (गुदाद्वार का संकुचन करते हुए) व जालंधर बंध (गर्दन नीची करके ठोडी से कण्ठकूप को दबाते हुए) श्वास को यथाशक्ति अन्दर रोककर रखें । जब श्वास अन्दर रोके रखना मुश्किल लगने लगे तो मूलबंध व जालंधर बंध को छोडते हुए अब दांई ओर के नासिका छिद्र से इस श्वास को धीरे-धीरे बाहर की ओर छोडदें । इस फार्मूले को यूं समझें- यदि 10 सेकन्ड में श्वास अन्दर आ रही है तो 10 से 20 सेकन्ड तक उसे अन्दर रोकने में और 20 ही सेकन्ड उस श्वास को बाहर छोडने मे लगाने का प्रयास करते हुए तीन बार इसे करें और इस अवधि में अपने ईष्टदेव का स्मरणगायत्री मंत्र जाप या फिर 'sम्उच्चारण मन ही मन में करते रहें ।


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निश्चित रुप से ये अभ्यास हमारे शरीर से अधिकांश रोगों को दूर रखने में पूर्ण उपयोगी साबित होते हैं और प्रातःकाल 20 मिनिट के नियमित क्रम में इन्हे पूरा भी किया जा सकता है । यह अलग बात है कि सामान्य मानव-प्रवृत्ति के अनुसार हम इसके लाभों को समझते हुए और इस समय को लगा सकने की स्थिति में होते हुए भी प्रायः आलस्यवश इसे करने से बचते रहना चाहते हैं । अतः उस आलस के विकल्प की स्थिति में भी किसी भी तरीके से और कभी भी श्वास को पूरी क्षमता और गहराई के साथ फेफडों में अन्दर तक भरें और कुछ पल अन्दर रोकते हुए धीमी गति से उसे बाहर छोड दें । इस क्रम को दिन भर में कम से कम 30-40 बार हम बगीचे में घूमते हुएसडक पर चलते हुए या फिर वाहन में बैठे हुए भी नियमित रुप से बनाये रख सकते हैं जिससे हमें या हमारे परिजनों को उपरोक्त स्थिति में वर्णित वेंटीलेटर जैसी खौफनाक त्रासदी का यथासंभव सामना न करना पडे । इस प्रयास को चाहे तो ये सोचकर ही सही कि-

 दुःख में सुमिरन सब करेंसुख में करे न कोय,

 जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे को होय.

अवश्य करते रहें ।


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स्वास्थ्य सुख

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Milan Tomic

Hi. I’m Designer of Blog Magic. I’m CEO/Founder of ThemeXpose. I’m Creative Art Director, Web Designer, UI/UX Designer, Interaction Designer, Industrial Designer, Web Developer, Business Enthusiast, StartUp Enthusiast, Speaker, Writer and Photographer. Inspired to make things looks better.

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7 टिप्पणियाँ:

  1. आपने स्वास्थ्य जागरूकता के लिए बहुत अच्छी जानकारी दी है ...

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  2. इस पोस्ट के माध्यम से बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दी है आपने..
    सही कहा है आपने उसकी छटपटाहट या तो स्वयं भुक्तभोगी समझ पाता है या फिर कुछ प्रतिशत में उसके वे परिजन जो उसके बहुत निकट रहने वाले होते हैं..मैं भी समझ सकती हूँ भुक्तभोगी हूँ न इसलिए . .

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. .......... बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी दी है आपने.

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  5. योग संबंधी उपयोगी जानकारी के लिए आभार।

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  6. इससे पहले कि साँसे रुक जाये.................देहदान कर दीजिए.मैंने कर दी आप भी कर सकते हैं.

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  7. aap ke is lekh se muje bahut gyan mila our me logo ko bhi iske laabh batauga
    thanks

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आपकी अमल्य प्रतिक्रियाओं के लिये धन्यवाद...

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