"तीन
महीने का प्रयोग करके देखें कि सात्विक अन्न खाने से अपने आप में आपको एक बदलाव
महसूस होने लगेगा - क्योंकि जैसा अन्न वैसा
मन ।"सात्विक अन्न सिर्फ शाकाहारी भोजन नही बल्कि परम-आत्मा को ध्यान में रखकर
बनाया गया भोजन होता है ।
गुस्से
से अगर खाना बनाया गया है उसे सात्विक अन्न नही कहेंगे, इसलिए खाना बनाने वालों को कभी भी नाराज, परेशान स्थिति में खाना नही बनाना चाहिए, और घर के जिम्मेदार सदस्यों को कभी भी
माँ बहनों को (या जो खाना बनाते हैं उनको) डांटना या उनसे लड़ना-झगडना नहीं चाहिये, क्योंकि वो रसोई में जाकर आपके ही खाने
में उस गुस्से वाली Vibrations को मिला कर.....अगले
ही घंटे में आपको ही खिलाने वाले हैं....अतः ये ध्यान में रखने वाली अत्यन्त ही
महत्वपूर्ण बात है ।
आप
किसी को डांट दो, गुस्सा कर लो और बोलो
जाओ जाकर खाना बनाओ.....अब....?
खाना
तो हाथ बना रहा है किंतु मन क्या कर रहा है,
मन
तो अन्दर से लगतार खिन्न है, तो वो सारे नेगेटिव Vibration उस खाने के अंदर ही तो जा रहे हैं...
भोजन
तीन प्रकार का होता है-
1. जो
हम होटल में खाते हैं,
2. जो घर में माँ बनाती
है और,
3. जो हम मंदिर और
गुरूद्वारे में खाते हैं ।
तीनो के Vibration अलग अलग होते हैं ।
1. जो खाना होटल वाले बनाते हैं उनके Vibration कैसे होते हैं, आप खाओ और हम कमायें, तो जो व्यक्ति ज्यादातर बाहर होटल में खाना खाता है उसकी वृति धन कमाने के अलावा कुछ और सोच ही नहीं सकती, क्यूंकि वो खाना ही वही खा रहा है ।
2. घर
में माँ जो
खाना
बनाती है, वो बड़े प्यार से खाना
बनाती है । चूंकि घरों में जब धन ज्यादा आ जाता है तो घर में Cook (नौकर) रख लिए जाते हैं खाना बनाने के
लिए और वो जो खाना बना रहे है वो भी इसी सोच से कि आप खाओ हम कमाएं ।
जबकि एक बच्चा जब अपनी माँ को बोले कि एक रोटी और खानी है तो माँ का चेहरा ही खिल जाता है । कितनी प्यार से वो एक और रोटी बनाएगी कि मेरे बच्चे ने रोटी तो और मांगी और वो उस रोटी में बहुत ज्यादा प्यार भी भर देती है । जबकि अगर आप अपने Cook (नौकर) को बोलो एक रोटी और खानी है तो वो सोचेगा रोज तो तीन रोटी खाते है, आज एक और चाहिए, आज ज्यादा भूख लगी है तो अब मेरे लिए एक रोटी कम पड जाएगी या आटा भी ख़त्म हो गया तो अब और आटा गुंथना पड़ेगा एक रोटी के लिए... मुसीबत...! ऐसी रोटी नही खानी है । ऐसी रोटी खाने से ना खाना ही भला ।
3. जो मंदिर और गुरूद्वारे में खाना बनता है, प्रसाद बनता है वो किस भावना से बनता है - वो परमात्मा को याद करके खाना बनाया जाता है क्यों न हम भी अपने घर में परमात्मा की याद में प्रसाद बनाना शुरू कर दें । इसके लिये करना क्या है-
घर, रसोई साफ़, मन
शांत, रसोई में अच्छे गीत
(भजन-कीर्तन) चलाएं और परमात्मा को याद करते हुए खाना बनाएं । घर में जो भी समस्याएं हैं उसके लिए जो
समाधान है उसके बारे में परमात्मा को याद करते हुए खाना बनाएं...
परमात्मा को कहें - मेरे बच्चे के कल exam हैं, इस खाने में वो ताकत और शांति भर दो ताकि मेरे बच्चे का मन एकदम शांत हो, और उसकी सारी टेंशन ख़तम हो जाए । हे परमात्मा, मेरे पति को Business में बहुत टेंशन है और वो बहुत गुस्सा करते हैं, इस खाने में ऐसी शक्ति भरो, कि उनका मन शांत हो जाये । फिर देखिये - जैसा अन्न वैसा मन । जादू होगा खाने में और असर होगा पकाने में ।
जैसा अन्न वैसा मन ... रोचक आलेख ...
जवाब देंहटाएंअन्न की भावना अनुरूप ही मन परिवर्तित होता रहता है ...
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ’बाबा आम्टे को याद करते हुए - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएं