जब किसी कारणवश आँख के लैंस की पारदर्शिता कम या समाप्त हो जाती है जिससे व्यक्ति को धुंधला दिखाई देने लगता है तो उस स्थिति को मोतियाबिंद कहते हैं । इस रोग का प्रभाव सामान्यतः वृद्धावस्था में अधिक होता है किन्तु कभी किन्हीं विशेष परिस्थितियों में युवा, बच्चे व नवजात शिशु पर भी इसका प्रभाव हो सकता है । इस रोग का समय रहते उपचार करवा लेने पर सामान्य दृष्टि पुनः प्राप्त की जा सकती है ।
मोतियाबिंद का कारण - सामान्यतः वृद्धावस्था, विटामिन तथा प्रोटीन जैसे पोषक तत्वों की शरीर में कमी, सूर्य किरण तथा विषाक्त पदार्थों के सेवन से होना पाया जाता है । मधुमेह, आनुवंशिकता तथा संक्रमण, सूजन, व चोट का भी मोतियाबिंद की स्थिति बनने में योगदान रहता है ।
लक्षण और चिन्ह - नेत्र दृष्टि का धुंधलापन मोतियाबिंद का प्रारम्भिक लक्षण हो सकता है । बिना किसी दर्द के धीरे-धीरे नजर कमजोर होती जाती है । शुरु में लेम्प, लाईट या चन्द्रमा एक से अधिक दिखाई पड सकते हैं । समय बीतने पर दृष्टि इतनी कमजोर पड जाती है कि व्यक्ति अपने सामान्य कार्यों के लिये घर से बाहर निकलने में भी डरने लगता है । दृष्टि कमजोर होने पर वह ठोकरें खाने लगता है और एक समय ऐसा भी आ सकता है जिसमें उसे सिर्फ रोशनी का ही आभास हो पाता है, इस स्थिति को 'परिपक्व मोतियाबिंद' (पका हुआ मोतियाबिंद) कहते हैं । यदि समय रहते इसका उपचार नहीं करवाया जावे तो यह नेत्रों में दबाव को बढा देता है जिससे आँख में कांचियाबिंद या आंतरिक सूजन भी आ सकती है जिससे आँख की रोशनी पूरी तरह से समाप्त हो सकती है । अतः मोतियाबिंद की पुष्टि होते ही प्रारम्भिक स्थिति में इसका आपरेशन करवा लेना श्रेयस्कर रहता है ।
नीम हकीमों से सावधान - गांव, आदिवासी क्षेत्रों में घूमने वाले तथा बिना आपरेशन मोतियाबिंद के इलाज का दावा करने वाले नीमहकीमों से सावधान रहें । प्रायः गांव के लोग जो आपरेशन व अस्पताल में रहने के खर्च से घबराते हैं वे इन नीम-हकीमों के शिकार बन जाते हैं और अपनी दृष्टि सदा के लिये खो बैठते हैं ।
एक ही इलाज - सिर्फ आपरेशन - मोतियाबिंद का उपचार किसी भी दवा से सम्भव नहीं है चाहे दवा आँख में डालने की हो या खाने की । शुरुआत में चश्मे के नम्बर बदलने से लाभ मिल सकता है, किन्तु मोतियाबिंद का जाना-माना इलाज सिर्फ आपरेशन ही है । आपरेशन के पहले ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर, ई.सी.जी. व संबंधित बीमारी की जांच अपने चिकित्सक की सलाह अनुसार करवालें ।
यह भी ध्यान रखें कि मोतियाबिंद पूरा पका रहने पर चिकित्सक को आँख के अन्दर की अन्य खराबियां नहीं दिखती अतः आपरेशन के पूर्व यह बता पाना सम्भव नहीं रहता कि रोशनी कितनी आयेगी । यदि आँख का पर्दा व नस ठीक हो, आँख में कांचियाबिंद व अन्य बीमारियां न हों तो प्रायः रोगी को अच्छी रोशनी वापस मिल जाती है ।
बिना लैंस प्रत्यारोपण के साधारण आपरेशन - साधारण आपरेशन में अपारदर्शी लैंस को हटा दिया जाता है जिससे बाद में मोटे चश्मे की सहायता से ही मरीज देख सकता है । इस मोटे चश्मे (लगभग +10.00 नंबर) की वजह से मरीज को कई समस्याओं का सामना करना पडता है जैसे-
मोटे चश्मे से ही दिखता है चश्मा उतारने पर कुछ नहीं दिखता है ।
मोटे चश्मे से वस्तु अपने आकार से 30 प्रतिशत बडी दिखती है ।
सीढियां चढने-उतरने ड्राइविंग, सिलाई, बीनने में तकलीफ होती है ।
दूर की वस्तु पास व आडी-तिरछी दिखाई देती है ।
फ्रेम व मोटे चश्मे के कारण देखने का क्षेत्र कम हो जाता है दिससे अगल-बगल में देखने के लिये गरदन घुमाकर देखना पडता है ।
यदि मरीज को केवल एक आँख में मोतियाबिंद है तो साधारण आपरेशन में केवल एक आँख में मोटा चश्मा (+10.00 नंबर का) लगाना पडेगा जिससे उसे दो-दो दिखने, व चक्कर, उल्टी आने की शिकायत बनी रहती है ।
मोटे व भारी चश्मे से नाक-कान में दर्द व जख्म हो जाता है व चेहरा भद्दा दिखने लगता है ।
कृत्रिम लैंस प्रत्यारोपण - मोटे चश्मे का उपयोग नहीं करना पडे इसके लिये कृत्रिम लैंस प्रत्यारोपण आपरेशन सर्वश्रेष्ठ है जिसमें मोतियाबिंद युक्त लैंस को निकालकर आँख में कृत्रिम लैंस लगा देते हैं ।
कृत्रिम लैंस - यह "पोली मेथएक्रीलेट" या साफ्ट पोलिमर एक्रीलिक का बना होता है एवं यह इंसान के वास्तविक लैंस की तरह काम करता है । किस मरीज को किस पावर व डिजाईन का लैंस लगाना है इसका निर्णय डाक्टर ही लेता है । कृत्रिम लैंस का नंबर "ए स्केन बायोमीटर" से निकालते हैं ।
कृत्रिम लैंस - यह "पोली मेथएक्रीलेट" या साफ्ट पोलिमर एक्रीलिक का बना होता है एवं यह इंसान के वास्तविक लैंस की तरह काम करता है । किस मरीज को किस पावर व डिजाईन का लैंस लगाना है इसका निर्णय डाक्टर ही लेता है । कृत्रिम लैंस का नंबर "ए स्केन बायोमीटर" से निकालते हैं ।
लाभ - कृत्रिम लैंस के लाभ निम्नानुसार हैं-
बिना चश्मे के भी दिखता है व प्राप्त दृष्टि बेहतर होती है । दूर और पास के लिये हल्का नंबर लगता है । प्रत्यारोपण में देखने का क्षेत्र सामान्य होता है ।
लैंस प्रत्यारोपण मधुमेह व उच्च रक्तचाप वाले मरीजों में भी किया जा सकता है ।
पैदाइशी मोतियाबिंद में भी 6 महिने से उपर के बच्चों को लैंस लगाया जा सकता है ।
फेको इमल्सिफिकेशन विधि - आजकल मोतियाबिंद के लैंस को हटाने के लिये एक नवीनतम विधि फेको इमल्सिफिकेशन काफी लोकप्रिय है । यह अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित व प्रभावशाली है ।
फेको इमल्सिफिकेशन मशीन एक कम्प्यूटराईज्ड इलेक्ट्रानिक्स मशीन है । इसमें एक बारीक सुई होती है जिसे आँख में एक छोटे रास्ते से (2 से 3 मि. मी. का चीरा लगाकर) प्रवेश कराते हैं यह सुई मोतियाबिंद को कई छोटे-छोटे भागों में विभाजीत कर खींच लेती है इसके बाद इसमें इन्ट्राआकुलर लैंस प्रत्यारोपित कर दिया जाता है । इसके कई फायदे हैं-
बहुत ही छोटा घाव जो बिना टांके के भर जाता है ।
आपरेशन के 2-4 घंटे बाद ही मरीज अपने घर जा सकता है ।
आपरेशन के बाद एक माह तक ध्यान रखें-
गर्दन के नीचे से नहायें, मिट्टी का प्रयोग न करें ।
अपने बालों को धोने के लिये सिर को बिस्तर के किनारे पर रखकर लेट जाएं व किसी दूसरे को इस तरीके से सिर धोने को कहें जिससे कि साबुन या पानी हर्गिज आँखों में न जाए ।
नाक छिडकने एवं शौच में जोर न लगाएं ।
तेजी से छींकें या खांसें नहीं, सुपारी न खाएं ।
भारी वजन नहीं उठाएं,कोई भी चीज सिर नीचा करके न उठाएं व जिस आँख का आपरेशन हुआ है उस करवट न लेटें ।
आँखों में दवा डालने व मल्हम लगाने से पहले अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह से साफ करलें ।
आँख को धूल, धूप, धुंए, चोट व पानी से बचावें ।
दिन में काला चश्मा पहनें व भीड से बचें ।
आँख को संक्रामक रोग से बचाने के लिये आँख को गंदे कपडे या उंगली से न छुएं और न ही रगडें ।
कुछ दिन आँख से पानी का बहना, जलन, चुभन व खुजली होना स्वाभाविक है । आँख लाल होने पर या दर्द होने पर तुरन्त अपने डाक्टर से सम्पर्क करें ।
अपने डाक्टर की सलाहानुसार अन्य बीमारियां जैसे - मधुमेह, उच्च रक्तचाप, दिल की बीमारी, जोडों की बीमारी, दमा, खांसी या अन्य का इलाज नियमित रुप से कराते रहें ।
आपरेशन के बाद के कुछ दिन तक रोशनी में धुंधलापन हो सकता है, 1-2 महिने में अपने डाक्टर से चश्मे हेतु आँखों की जांच करावें । प्रायः दूर व पास के लिये हल्के नंबर की आवश्यकता पड सकती है ।
लैंस प्रत्यारोपण से सम्बन्धित अन्य बातें
1. लैंस प्रत्यारोपण में प्रत्येक आँख का 5,000/- से 50,000/- रु. तक खर्च आ सकता है जो कृत्रिम लैंस की गुणवत्ता, आपरेशन तकनीक, डाक्टर, शहर व अस्पताल की सुख-सुविधाओं पर निर्भर करता है ।
2. यदि दोनों आँखों में मोतियाबिंद है तो दोनों आपरेशन में एक महिने का अन्तर रखा जाना चाहिये ।
3. मोतियाबिंद आपरेशन के कुछ समय बाद कृत्रिम लैंस के पीछे की झिल्ली सफेद पड सकती है जिससे धुंधलापन आ जाता है । इसे (Yag) लेजर से काट दिया जाता है ।
4. लैंस सस्ता हो या मंहगा या प्रत्यारोपण आपरेशन किसी भी तकनीक से किया जावे आँख की रोशनी सबमें लगभग दो माह पश्चात बराबर आती है, अतः आप अपने बजट को देखते हुए ही इस बारे में निर्णय लें । सभी क्वालिटी के लैंस लाईफलांग चलते हैं ।
5. मोतियाबिंद के आपरेशन के बाद आँख में रोशनी का आना- कार्निया, रेटिना की खराबी, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, ग्लुकोमा, मेकुलोपेथी, पुरानी चोट का असर व अन्य बीमारियों के काम्प्लीकेशन पर निर्भर करता है ।
6. जिन मरीजों को मेकुलोपेथी, आप्टिक एट्राफी या एम्बलायोपिया हो उन्हें बहुत कम रोशनी आती है ।
फ्री आई केम्प / प्राइवेट अस्पताल
शासकीय अस्पतालों, सामाजिक संस्थाओं व ट्रस्ट हास्पिटल में समय-समय पर मुफ्त लैंस प्रत्यारोपण हेतु आई केम्प आयोजित किये जाते हैं । गरीब मरीज इनका लाभ ले सकते हैं ।
डा. हिमांशु अग्रवाल द्वारा लाला रामस्वरुप रामनारायण पंचांग से साभार...
आज की ब्लॉग बुलेटिन बिस्मिल का शेर - आजाद हिंद फौज - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत ही उपयोगी जानकारी दी …………आभार
जवाब देंहटाएंहमजैसो के लिए बहुत लाभदायक जानकारी ...
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख
आभार ...
बहुत उपोगी जानकारी...
जवाब देंहटाएंBahut hi upyogi jankari di Abhar
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी दी गई है
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