सामान्य
जीवन में हमारे 45-50 वर्ष की उम्र में आने तक शरीर की सभी प्रकार की क्षमताओं में
कमी आना प्रारम्भ हो जाता है । बालों में सफेदी (हेअर डाई की जरुरत), नजर में कमी
(चश्मे की जरुरत) और हड्डियों में कमजोरी की शुरुआत बहुसंख्यक लोगों में यहीं से
शुरु होती है जिसे हम सामान्य स्थिति में प्रौढावस्था कहते हैं । यहाँ हम मुख्य
रुप से हड्डियों में होने वाली कमजोरी की बात कर रहे हैं जिसके कारण अक्सर घुटनों
को मोडने में कट-कट जैसी आवाजें आना प्रारम्भ हो जाती है ।
किसी भी
प्रकार की अनावश्यक दुर्घटना से बचाव हेतु यहीं से हमें अपने शरीर के सामान्य
हलन-चलन व उठने-बैठने में कुछ अधिक सावधानी रखने की आवश्यकता होने लगती है अतः यदि
आपको भी इस प्रकार से जोडों की हड्डियों में दर्द या घुटनों में कट-कट जैसी आवाज आती
महसूस होने लगे तो इससे बचाव के लिये सबसे पहले अपने खान-पान में ये प्रयोग अवश्य
प्रारम्भ करें-
1. मेथीदाने- मेथीदाने का सेवन हड्डियों की मजबूती के लिए बेहद उपयोगी है । इसके लिए रात को आप आधा चम्मच मेथीदाने एक गिलास पानी में भिगो दें व सुबह उन भीगे हुए मेथी के दानों को चबा-चबा कर खाने के साथ ही इसके पानी को भी पी लें । नियमित रूप से यह आदत बना लेने पर हड्डियों से आवाज आना बंद होने में मदद मिलेगी ।
2. दूध- हड्डियों से कट-कट की आवाज आने का मतलब ये भी हो सकता है कि उनमें लुब्रिकेंट की
कमी हो गई हो । अक्सर उम्र बढ़ने के साथ ही यह समस्या बढ़ने लगती है । इसलिए शरीर
को पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम देना जरूरी होता है । ऐसे में कैल्शियम के लिये
गेहूं के दाने बराबर खाने के चूने को दिन में एक बार एक गिलास पानी में घोलकर पीने
के साथ ही नियमित दूध अवश्य पिएं ।
3. गुड़ व चना- भूने हुए चने के साथ गुड़ का सेवन शरीर के लिए अत्यंत फायदेमंद होता है ।
भुने चने में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन
और विटामिन भरपूर मात्रा में पाया जाता है । दिन में एक बार गुड़ और भुने हुए चने
जरूर खाएं । इससे हड्डियों की कमजोरी दूर होगी और कट-कट की आवाज आना भी बंद हो
जाएगी ।
इसके
अलावा घुटनों को लम्बे समय तक कार्यक्षम बनाये रखने के लिये जमीन पर आलथी-पालथी लगाकर
बैठना कम कर दें क्योंकि जब हम इस स्थिति से वापस उठकर खडे होते हैं तब इन
घुटनों को शरीर को वापस खडा करने में शरीर के सामान्य भार से दोगुना तक अधिक वजन
उठाना पडता है जो इसकी कार्यक्षमता को और अधिक कम करता है । पलंग पर यदि हम इस
आलथी-पालथी वाली मुद्रा में बैठते हैं तो वहाँ यह असर नहीं पडेगा क्योंकि तब हम
सिर्फ पांव फैलाकर ही पलंग या तखत जैसे स्थान से आसानी से उतरकर खडे हो जाएंगे किंतु जमीन
से उठकर खडे होने में स्थिति बदल जाती है ।
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