जानिये क्या व कैसे होता है डायबिटीज (मधुमेह) रोग.

            अनियमित जीवनशैली व अधिक स्वाद की चाहत के बढते चलन से जो घातक रोग इस समय समूचे विश्व में तेजी से पैर पसार रहा है और जिसमें एशिया विश्व से आगे व भारत एशिया से भी आगे चल रहा है वह डायबिटीज रोग मानव शरीर में कैसे घर करता है यह जानकारी सिलसिलेवार तरीके से हमें दे रहे हैं जाने-माने चिकित्सक डा. पंकज अग्रवाल-

       डायबिटीज को समझने के लिये हमें शुगर को समझना होगा । यहाँ शुगर का मतलब है ग्लुकोज या शर्करा । यह हमारे शरीर के लिये कोई अवांछित पदार्थ नहीं है बल्कि यह हमारे शरीर का श्रेष्ठ ईंधन है । शरीर को अपने प्रत्येक कार्यकलाप के लिये आवश्यक उर्जा इसी शुगर जो ग्लुकोज रुप में परिवर्तित होती रहती है से प्राप्त होती है, यदि शरीर में इस ग्लुकोज का स्तर कम होने लगे तो हमारा शरीर कमजोरी अनुभव करने लगेगा और हमारे सभी क्रियाकलाप मंद होते चले जावेंगे ।

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       हम जब भोजन करते हैं तो उस भोजन से हमें ग्लुकोज या शुगर की काफी अधिक मात्रा प्राप्त होती है । इस बढी हुई मात्रा को उस वक्त जब हम भोजन नहीं कर रहे होते हैं तबके लिये सम्हाल कर रखना शरीर की एक बडी जिम्मेदारी होती है । इसके लिये शरीर संचालन में इस शुगर को बढने या कम होने से रोकने के लिये शरीर विभिन्न हारमोन्स का इस्तेमाल करता है ।

       यही हारमोन्स रक्त में शुगर के स्तर को 80 से 120 मि. ग्रा. प्रतिशत के स्तर पर भूखे पेट व भोजन के दो घंटे बाद 120 से 150 मि. ग्रा. प्रतिशत तक बनाये रखने का कार्य अपनी सामान्य अवस्था में करते हैं ।

       जब भोजन से प्राप्त यह उर्जा हमें सामान्य से अधिक मात्रा में मिल जाती है तब जब हमें भोजन नहीं मिल रहा होता है उस वक्त के लिये इस शर्करा या ग्लुकोज को शरीर लीवर व मांसपेशियों में ग्लायकोजन के माध्यम से व उससे भी अधिक बढने पर हमारे फेट सेल में फेट्स के माध्यम से संग्रहित रखता है । यदि हम यह समझने की कोशिश करें कि किस प्रकार से इस संचार क्रम को शरीर व्यवस्थित रखता है तो-

       भोजन से प्राप्त उर्जा को संग्रहित रखने में इंसुलीन नामक हारमोन की भूमिका प्रारम्भ होती है जो वीटा सेल्स के माध्यम से हमारे शरीर के पेंक्रियाज (अग्नाशय) में निर्मित होता है व हमारे रक्त में ग्लुकोज व इंसुलीन दोनों साथ-साथ संचारित होते रहते हैं । यह इंसुलीन लीवर में पहुंचकर ग्लुकोज के आवश्यक तत्व को लीवर में प्रवेश करवाता है जहाँ लीवर इस प्राप्त संग्रह को ग्लायकोजन रुप में परिवर्तित करवाता है जो आवश्यकतानुसार शरीर में ग्लुकोज के स्तर की आपूर्ति नियंत्रित रखने में मददगार होता है ।

       जिस प्रकार भोजन से प्राप्त उर्जा या शर्करा को मांसपेशियों के द्वारा ग्लायकोजन के रुप में संग्रहित किया जाता है उसी प्रकार यदि कुछ समय तक भोजन न मिले या रक्त में ग्लुकोज का स्तर कम होता जावे तब उसे बढाने के लिये इसी ग्लायकोजन को तोडकर उसमें से आवश्यक ग्लुकोज की आपूर्ति करना शरीर का एक आवश्यक तत्व है जिससे रक्त में ग्लुकोज का स्तर सामान्य से कम ना हो ।

       इस चक्र को सुचारु रुप से चलायमान रखने में पेंक्रियाज द्वारा उत्पन्न ग्लुकोकान हार्मोन ब्लड ग्लुकोज का स्तर बढाने में मदद करता है, इंसुलीन ब्लड ग्लुकोज का स्तर बढ जाने पर उसे घटाने में व ग्लुकोकान ब्लड ग्लुकोज का स्तर घट जाने पर उसे बढाने में मदद करता है एवम् हमारा शरीर तंत्र सुचारु रुप से अपनी सामान्य गतिविधि संचालित करता रहता है व इंसुलीन इस पूरी प्रक्रिया का केंद्रबिंदु होता है । 

       यह इंसुलीन जब सामान्य मात्रा में बन नहीं पाता या कमजोर अवस्था में बनता तो है किंतु अपना कार्य सुचारु रुप से नहीं कर पाता तब दोनों ही अवस्थाओं में शरीर में ब्लड ग्लुकोज का स्तर बढता चला जाता है जिसे हम डायबिटीज के रुप में पहचानते हैं ।

       डायबिटीज में ब्लड ग्लुकोज का स्तर सामान्य से बहुत अधिक बढ जाता है और फिर यह शरीर के विभिन्न अंगों पर अपना दुष्प्रभाव डालता है । इसीलिये इस रोग को हम जननी सर्व रोगाणाम् भी कहते हैं । पेंक्रियाज में यदि बच्चों में टाईप-1 डायबिटीज है तो ये इंसुलीन की कोशिकाएं वीटा सेल्स बेकार हो जाती हैं एवम् इंसुलीन नहीं बनाती । बडों में टाईप-2 डायबिटीज में ये इंसुलीन बनाती तो हैं किंतु यह इंसुलीन कमजोर अवस्था में ग्लुकोज को सेल्स के अंदर नहीं पहुंचा पाता और अपनी बढी हुई अवस्था में ही रक्त में परिभ्रमित होता रहता है फिर इंसुलीन व ग्लुकोकान का संतुलन बिगड जाने से शरीर में भोजन के बाद की अवस्था या दोनों समय के भोजन के बीच की अवस्था दोनों ही स्थितियों में इंसुलीन का व्यवस्थित तालमेल न होने से ब्लड में ग्लुकोज का स्तर बढता चला जाता है और शरीर को विभिन्न दुष्परिणामों की ओर बढाता चलता है ।

       सारांश में ग्लुकोज हमारे शरीर के लिये एक आवश्यक तत्व है जो विभिन्न कार्यकलापों के लिये शरीर को हर समय उर्जा प्रदान करता रहता है यानि यह शरीर का मुख्य ईंधन है और यह इंसुलीन व ग्लुकोकान के माध्यम से निर्मित होता है । जब ग्लुकोज की मात्रा बढ जाती है तो इंसुलीन मांसपेशियों के द्वारा उस ग्लुकोज को कार्यकलापों में प्रयुक्त करवाता है और आवश्यकता से अधिक बढ जाने पर लीवर में ग्लायकोजिन के रुप में या फेट सेल्स में फेट्स के रुप में संग्रहित करवा देता है ।

       इसके विपरीत जब ब्लड ग्लुकोज का स्तर कम होने लगता है तब ग्लुकोकान संचित ग्लायकोजिन या फेट्स को तोडकर उसे ग्लुकोज रुप में परिवर्तित करता है और रक्त में ग्लुकोज के सामान्य स्तर को बहाल करवाता है । डायबिटीज में बच्चों को होने वाली टाईप-1 डायबिटीज जिसमें इंसुलीन निर्मित ही नहीं हो पाता या टाईप-2 डायबिटीज जिसमें इंसुलीन निर्मित तो होता है किंतु उचित प्रकार से अपना कार्य नहीं कर पाता । तब ब्लड ग्लुकोज का स्तर बढने लगता है व यही बढता हुआ अनियंत्रित स्तर शरीर के विभिन्न अंगों पर दुष्प्रभाव डालने लगता है ।


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       हमें यहाँ यही समझना है कि यदि इंसुलीन नहीं बन रहा है तो हमें बाहर से इंसुलीन प्राप्त करना होता है और यदि बन तो रहा है किंतु कमजोर कार्यक्षमता में होने से अपना कार्य सुचारु रुप से नहीं कर पा रहा है तो बाहरी दवाईयां अथवा अतिरिक्त संसाधनों द्वारा ऐसे खानपान या जीवनशैली को अपनाना होगा जहाँ हम इस न्यूनावस्था में उपलब्ध इंसुलीन की कार्यक्षमता बढाकर ब्लड में ग्लुकोज की मात्रा को नियंत्रित रख पाने में पूर्ण सक्षम हो सकें ।

       सामान्य शरीर विज्ञान की यह जानकारी हमें अपने ब्लड-ग्लुकोज के उचित स्तर को नियमित व नियंत्रित रखने में सदैव मददगार साबित हो सकेगी ।

-डा. पंकज अग्रवाल



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Milan Tomic

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7 टिप्पणियाँ:

  1. आज की जीवन-चर्या के लिए बहुत उपयोगी लेख - आभार !

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