शुगर की बीमारी में शुगर की भूमिका.

  शुगर (डायबिटीज) की बीमारी के साथ शुगर(शक्कर) की मिठास का चोली-दामन का रिश्ता है । इसे हम यूं समझ सकते हैं कि अंग्रेजों के द्वारा हमारे देश में सन् 1868 में पहली शक्कर मील की स्थापना की गई थी तो उसके पूर्व न तो देश में कोई शक्कर के स्वाद को जानता-समझता था और न ही डायबिटीज जैसे घातक रोग का देश में कोई वजूद था । आज जबकि महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, पश्चिम उत्तर-प्रदेश जैसे क्षेत्रों में चीनी मीलों की भरमार है वैसे ही देशभर में डायबिटीज के रोगियों की दुनिया भर में सबसे बडी संख्या भी भारत में ही देखी जा रही है और इसमें निरन्तर गुणात्मक गति से वृद्धि भी लगातार चल रही है ।

       बीमारियों के साथ इसके सम्बन्ध को समझने के लिये हमें इसकी निमार्ण प्रक्रिया को भी समझना आवश्यक होगा । खान-पान के स्वाद को विकसित करने के लिये जिस मिठास के हम आदी हैं वह हमें शक्कर से भी मिलती है और गुड से भी और इन दोनों की ही मिठास का मुख्य स्रोत गन्ने का रस ही होता है । किन्तु गुड के निर्माण में जहाँ उस गन्ने के रस को सिर्फ उबालकर व उसका मैल हटाने के लिये उसमें कुछ दूध जैसे अवयवों का मिश्रण कर उसे जमाकर गुड बना लिया जाता है वहीं इस दानेदार सफेद व चमकीली शक्कर की निर्माण विधि में करोडों रु. लागत की मशीनरी के साथ जिस काम्पलीकेटेड तकनीक का प्रयोग होता है उसके चलते इसमें अनेक प्रकार के घातक रसायनों (केमिकल्स) का प्रयोग किये बगैर शक्कर को इस रुप तक पहुंचा पाना सम्भव ही नहीं होता । सामान्य अवस्था में ये सभी केमिकल्स घातक बीमारियों के जन्मदाता होने के साथ ही मानव शरीर के उपयोग में आने योग्य कतई नहीं होते । रसायनों की जानकारी के इस क्रम की अधिक गहराई में जाये बगैर सिर्फ एक रसायन जिसे हम सभी जानते हैं कि इसके बगैर शक्कर नहीं बन सकती उसका जाना-पहचाना नाम है “सल्फर”, अब यदि इसी “सल्फर” के बारे में हम समझने का प्रयास करें तो इसका अर्थ होगा "गंधक", जबकि इसी गंधक के प्रयोग से बारुद बनाकर दीपावली पर फटाके बनाये जाते हैं । सल्फर के बगैर चीनी/शक्कर नहीं बनती और इसीके परिवर्तित स्वरुप में गंधक के बारुद के बगैर फटाके नहीं बन सकते ।

नतीजा यह कि गुड की मिठास ‘फेक्ट्रोज’ के रुप में हमारे शरीर को प्राप्त होती है और प्रकृति द्वारा उत्पन्न सभी मीठे फलों में उपलब्ध मिठास भी फेक्ट्रोज के रुप में ही हमारा शरीर प्राप्त करता है जबकि इन घातक रसायनों से निर्मित होने वाली शक्कर की मिठास ‘सुक्रोस’ रुप में परिवर्तित होकर हमारे शरीर को मिलती है और सुक्रोस का मुख्य अवगुण यह हो जाता है कि यह खुद तो हजम हो ही नहीं पाता बल्कि जिस भी खाद्य सामग्री में हम इसे मिलाकर प्रयोग में लाते हैं उसे भी आसानी से हजम नहीं होने देता । परिणामतः  जिस गुड के प्रयोग से हमारे शरीर को प्रचुर मात्रा में केल्शियम, फास्फोरस, पोटेशियम, सोडियम, मेंगनीज जैसे अनेकों पोषक तत्व प्राप्त होते हैं वहीं इसी गन्ने के रस से निर्मित शक्कर से शरीर को सिर्फ न पच सकने वाले जहर की ही आपूर्ति निरन्तर होती रहती है ।

      हमारे देश में चीनी का चलन प्रारम्भ करवाने वाले विदेशी लोगों ने भी इनके अपने देशों में आबादी पर  इसके बढते दुष्परिणामस्वरुप जन्मने वाली अनेकों बीमारियां और निरन्तर बढ रहे मोटापे की स्थिति को देखने-समझने के बाद अपने यहाँ इसके प्रयोग को हतोत्साहित करते हुए वर्षों पूर्व से शुगरफ्री मिठाईयां, केक, पेस्ट्रीज व चाकलेट्स के प्रचलन को निरन्तर बढावा देना प्रारम्भ कर दिया है जबकि हमारे अपने देश में इस शक्कर का प्रयोग चाय-दूध, दही-लस्सी, मिठाईयां और तो और दाल व सब्जियों में भी डालकर खाने का चलन बढता ही जा रहा है और जिस अनुपात में देशवासियों में इसकी खपत बढ रही है उसी अनुपात में पहले डायबिटीज व पेट पर जमी चर्बी का मोटापा बढने के साथ-साथ हाई ब्लड-प्रेशर, ब्रेन स्ट्रोक और एक रिसर्च से प्राप्त परिणामों के अनुसार कुल जमा 103 प्रकार की छोटी-बडी बिमारियों के कारण रुप में शक्कर की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष भूमिका सामने आई है और उसका एकमात्र कारण सिर्फ यह कि ये शक्कर शरीर में जाती तो है किन्तु हजम होकर अन्य खाद्य सामग्रियों के समान मल-मूत्र, पसीना, बलगम किसी भी रुप में शरीर से निष्कासित नहीं हो पाती, बल्कि शरीर में ही कोलेस्ट्राल रुपी कचरे में परिवर्तित होकर हमारे खून को खराब करके सभी बीमारियों को जन्म देने का कारण बनती चली जाती है ।

यदि हम अपने भोजन के अन्त में 10-20 ग्राम गुड खाकर देखें तो हम पाएँगे कि सामान्यतः 6 घंटे में पचने वाला वह भोजन जो शक्कर की मौजूदगी में 8 घंटे में भी पूरी तरह नहीं पच पाता, हमारा वही भोजन गुड के प्रयोग के साथ होने पर 4 घंटे में ही पूरी तरह से पचकर भोजन के सभी आवश्यक व उपयोगी पोषक तत्व शरीर को आसानी से उपलब्ध करवा देता है । यदि आप शक्कर का प्रयोग बंद करके देखें तो आप पाएंगे कि 15 दिनों में ही आपका वजन बगैर एक्सरसाईज के कम होना प्रारम्भ हो जावेगा । घुटने, कमर, कंधे के दर्द में बगैर उपचार के आराम मिलने लगेगा । आसान व अच्छी नींद यदि नहीं आती तो शक्कर का प्रयोग बंद होने के बाद स्वमेव अच्छी नींद बगैर स्लिपिंग पिल्स के आने लगेगी । सर्दी-जुकाम जैसी समस्या से यदि आप पीडित रहते हों तो इसके बाद वे भी आसानी से दूर होते दिखने लगेंगे । सिरदर्द-माईग्रेन जैसी समस्या से यदि आप ग्रसित हैं तो उसका भी उपचार हो जावेगा और आपको अपना शरीर हल्का व स्फूर्तवान लगने लगेगा ।

 शक्कर के शरीर पर घातक परिणामों को समझने के लिये आप स्वयं एक छोटा सा प्रयोग करके इसके दुष्परिणामों का परिक्षण कर सकते हैं । कैसे एक कटोरी में थोडी शक्कर डालें फिर उसमें उतना ही पानी डालकर दोनों को गलने जितनी देर के लिये छोड दें । पश्चात् उसके उस गाढे लेप को अपने पैरों के किसी भी हिस्से में लगाकर 20-25 मिनीट या आधे घंटे के लिये ऐसा ही छोड दें और आधे घन्टे बाद उस स्थान की त्वचा को देखिये आपको वहाँ की त्वचा में ऐसा रुखापन व कडापन स्वयं महसूस होगा जो रगड-रगडकर धोने के बाद भी आसानी से अपनी सामान्य अवस्था में नहीं आ पाएगा । अतः यदि आप डायबिटीक हैं तब तो अपने शेष जीवन के लिये यह अनिवार्य मानें कि आपको अपने खान-पान से शक्कर को पूर्णतः अलविदा कर ही देना चाहिये किंतु यदि आप पूर्ण स्वस्थ हैं और अपने स्वास्थ्य को लम्बे समय तक स्वस्थ भी देखना चाहते हैं तब भी आपको यह कोशिश अनिवार्य रुप से करना चाहिये कि आप इस शक्कर का प्रयोग करना कैसे बन्द कर सकते हैं ।

शक्कर के वैकल्पिक समाधान के रुप में आप गुडखांड अथवा मिश्री का प्रयोग प्रारम्भ कर सकते हैं । सम्भव है इस बदलाव से शुरु में आपको कुछ पैसे ज्यादा खर्च होते लगें या इनका प्रयोग बनाना या बढाना शक्कर जितना आसान ना लगे किन्तु इसके बदले में मिलने वाला स्वास्थ्य और भविष्य की बीमारियों पर लग सकने वाले अच्छे-खासे चिकित्सा खर्च से मुक्ति का सुखद अहसास लम्बे समय के सुख-शान्ति व निरोगी जीवन के रुप में अनिवार्यतः प्राप्त होता रह सकेगा । आभार सहित.... 


स्व. राजीव दीक्षित के उद्गारों से संकलित.



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Milan Tomic

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6 टिप्पणियाँ:

  1. एक आख्यान में मैंने सुना था....
    चार सफेद वस्तु का सेवन शरीर के लिये घातक है....
    जिसमें पहला नम्बर शक्कर का है
    दूसरा मैदा है
    तीसरा नमक है
    और चौथा आपको ताज्जुब होगा वो दूध है
    हाँ दही की वर्जना नहीं है... वह ले सकते हैं.
    एक उम्दा आलेख
    साधुवाद

    सादर

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  2. मिश्री और गुड़ से क्या कोई खतरा नहीं ।संतुलित मात्रा मे लिया जाऐ तो चीनी का विकल्प बन सकता है क्या गुड़ अथवा चीनी ?

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आपकी अमल्य प्रतिक्रियाओं के लिये धन्यवाद...

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