जब यह प्रमाणित हो जावे कि आप या आपके कोई परिजन इस रोग की गिरफ्त में हैं
तो आगे की जीवनशैली में रोग को न बढने देने व अपने सामान्य स्वास्थ्य को बरकरार
रखने के लिये किन बातों का ध्यान रखा जावे जिससे कि (राजरोग कहा जाने वाला) यह रोग यदि पूर्णतः ठीक नहीं भी हो पा रहा हो तो कम
से कम आगे बढने न पावे । क्योंकि हमारी जीवनशैली व खान-पान में बदलाव किये बगैर यह
समस्या कम नहीं होगी बल्कि दिन-ब-दिन इसकी उग्रता में दो तरीकों से वृद्धि होगी
जिनमें पहली तो यह कि खान-पान व जीवनशैली में बदलाव किये बगैर वह कारण अपना कार्य़
शरीर में उसी प्रकार करते रहेंगे जिसके चलते इस रोग की शरीर में उत्पत्ति हुई और
दूसरा यह कि चिकित्सक द्वारा शरीर में इंसुलीन की कमी के पूर्ति के लिये जो भी
एलोपैथिक दवाईयां अथवा उपरी इंसुलीन दिये जावेंगे वे तात्कालिक रुप से तो समस्या
का समाधान करते दिखेंगे किन्तु आने वाले समय में उनके साईड इफेक्ट जो शरीर पर
पडेंगे उसके कारण एक ओर तो उन दवाईयों का परिमाण (मात्रा) बढता जावेगा और दूसरी ओर
जीवन को बचाये रखने की जद्दोजहद में उन बढते हुए परिमाण की उपरी दवाईयों के साईड
इफेक्ट शरीर की अक्षमता को और भी अधिक बढाने के चक्रव्यूह में रोगी को धकेलते
रहेंगे ।
ऐसे में
स्वयं को ऐसी अप्रिय स्थिति से बचाये रखने के लिये सबसे पहले तो आप इस बात को
समझने का प्रयास करें कि अपने खान-पान में आपको किन चीजों से परहेज रखना चाहिये और
किन चीजों को अपने भोज्य पदार्थों में “हेल्दी सो टेस्टी” के सिद्धांतानुसार न सिर्फ शामिल करना चाहिये
बल्कि उन्हीं वस्तुओं की अधिकता पर अपने शेष जीवन के खान-पान का दारोमदार
निर्धारित कर लेना चाहिये । क्योंकि आगे के जीवन में खान-पान से जुडी लापरवाहियां
इसके किसी भी रोगी को सामान्य जीवन में सेक्स सुख से वंचित करवा देने के साथ ही, आंखों में धुंधलेपन से
अंधेपन तक की समस्या, गुर्दे
या किडनी नाकाम हो जाने की समस्या जिसके कारण मूत्र-मार्ग से निष्कासित हो सकने
वाले विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकलवाने के लिये रोगी को डायलिसिस माध्यम
पर हर सप्ताह ही नहीं बल्कि सप्ताह में दो या अधिक बार तक निर्भर हो जाना पडता है, ह्रदय की रक्त नलिकाओं के
सिकुडने व सख्त होते जाने के कारण एंजियोग्राफी अथवा बायपास सर्जरी की नौबत अथवा
हार्ट-अटैक का खतरा, रक्त
वाहिकाओं (नसों) की खराबी के कारण पेरालिसिस (लकवे) की गिरफ्त में आ जाना जैसी
गंभीर, अत्यंत
खर्चीली व असह्य कष्टसाध्य बीमारियों की गिरफ्त में फंसना पड सकता है ।
इस
स्थिति से बचने के लिये अपने आहार से – मिठाईयां, चाकलेट्स, कोल्ड ड्रिंक अथवा मीठी
वस्तुओं से यथासम्भव परहेज करें क्योंकि इनमें मौजूद शक्कर को शरीर पचा सकने में
समर्थ नहीं होता । ज्यादा चर्बीदार खाना जैसे बर्गर, पिज्जा, पनीर, मांस, मैदे से निर्मित व तले हुए
खाद्य पदार्थ जैसे आलू की चिप्स,
बडापाव, पानीपूरी
या गोलगप्पे, कचोरी, समोसे, पूडी-परांठे घी, आदि के सेवन को यथासम्भव
पूर्ण नियंत्रित करें अथवा सम्भव हो तो बंद करदें ।
इनकी
बनिस्बत अपने आहार में संपूर्ण दानेदार खाद्य पदार्थ जैसे – अंकुरित मूंग, मोठ, चने, चंवले, मांड निकाला हुआ चावल, दालें, 50%,गेहूँ के साथ जौ, ज्वार व देशी चने
17%, 17%, के समान अनुपात में मिलवाकर
इसके आटे की मिस्सी रोटी, पालक, मैथी, सरसों, पत्ता गोभी जैसी हरी
पत्तेदार सब्जियां, खीरा
ककडी, टमाटर, प्याज, लहसुन, नींबू, आंवले व अलसी अथवा अलसी के
तेल के साथ
ही अमरुद, सेवफल, पपीता, तरबूज जैसे अल्प मिठास वाले
फलों का अधिक सेवन करें । पौष्टिक वनस्पति या सरसों के तेल का अल्पतम मात्रा में
प्रयोग करें । दूध में कम फेट्स वाले स्कीम्ड मिल्क, इसी से बने दही के साथ ही छाछ का अधिक प्रयोग करें
। आमाशय पर अधिक भार न डालते हुए एक बार में डटकर खाने की बजाय भूखे रहें बगैर
यथासम्भव 3-3 घंटे के अनुपात में अपने भोजन को बांट दें ।
धूम्रपान
यदि करते हों तो उसे बन्द कर दें । वर्ष में एक बार अनिवार्य रुप से अपनी आंखों व
पेशाब (मूत्र) की जांच करवाते रहें । ब्लड-प्रेशर न बढने दें । हर रोज 2 से 3 लीटर
पानी अनिवार्य रुप से पिएं । अपने पैरों के तलवों व उंगलियों के पोरों व जोडों की
आईने की मदद से सूक्ष्म देखभाल रखें । यदि कहीं छाले, जख्म या सूजन जैसी न ठीक
होने वाली समस्या दिखाई दे तो अपने डाक्टर को दिखाएं । पेट पर चर्बी का जमाव अथवा
मोटापन न बढने दें । पैरों में आरामदायक जूते व मौजे पहनकर रहें । नंगे पैर न चलें
। यदि न भरने जैसे घाव दिखें तो आसानी से उपलब्ध नीम व पीपल के पत्तों को उबालकर
उसके पानी से घाव को धो लें फिर उसमें इन्हीं नीम व पीपल के पेड के तने की छाल को
शुद्ध शहद में घिसकर बनने वाले लेप को घाव पर लगाकर उसे पट्टी बांधकर रखें तो उस
घाव के शीघ्र ठीक हो जाने की स्थिति बन जावेगी ।
ये सब
उपाय जो आपने उपर देखे इनके द्वारा तो आप अपने रोग को बढने से रोककर नियंत्रित
रखने का प्रयास कर सकते हैं । अब इस रोग को शरीर से दूर करने के प्रयास हेतु आप
अधिक से अधिक सक्रिय रहें, कम से कम
3 किलोमीटर प्रतिदिन पैदल चलें,
40 से 60 मिनीट योग,
प्राणायाम् अथवा कसरत अनिवार्य रुप से करें व किसी जानकार से सीखकर
योग में मत्स्येन्द्रासन, मंडूकासन
व त्रिबन्ध प्राणायाम की 3 से
10 तक आवृत्ति प्रतिदिन करें । इस प्रयोग से धीरे-धीरे ही सही किंतु शरीर का
इंसुलीन स्वयं बनना व स्वस्थ अवस्था में बढना प्रारम्भ हो सकेगा और आप इसी अनुपात
में रोगमुक्त होकर आगे के जीवन को निरोगावस्था में गुजारने का स्वप्न साकार कर
सकेंगे । इसके अलावा साईड इफेक्ट बढाने वाली बाहरी चिकित्सकीय दवाईयां और इंसुलीन
के घातक उपरी प्रयोग से शीघ्र मुक्ति पाने के प्रयास को और गति देने के लिये आप
आयुर्वेद की ऐसी दवाईयों का प्रयोग प्रारम्भ कर सकते हैं जो शरीर को किसी भी किस्म
का नुकसान पहुंचाये बगैर अनिवार्य रुप से रोगमुक्त करने का कार्य आपके शरीर के
लिये करती रह सकें ।
बहुत ज्ञान वर्धक .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (26.08.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
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