किसी
को दुःख न दें- सबसे पहले हम ऐसे किसी भी कार्य-व्यवहार से
बचने की कोशिश करें जिससे किसी को भी दुःख पहुँचता हो. क्योंकि जानकर या बदले की
भावना रखते हुए जब हम किसी को दुःख पहुँचाने का प्रयास करते हैं तो इस प्रयास
में हम स्वयं भी कुछ तो दुःखी होते ही हैं और फिर
सामने वाला भी ऐसा ही जबाबी कार्य करता है जिससे हमें दुःख पहुँचे याने दोनों ओर
से दुःख पलटकर हमारे पास ही आता है । अतः
सुखी होने के प्रयास को बनाये रखने के लिये कभी भी किसी को अपनी ओर से दुःख न दें
।
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अनावश्यक
चिंताओं से बचें- ऐसे कोई भी कारण जैसे सार्वजनिक भ्रष्टाचार, निरन्तर
बढती मंहगाई, ट्रेन का समय पर न आना व इससे मिलते जुलते वे सभी कारण जिनसे हम
प्रभावित तो होते हैं किन्तु जिन पर हमारा कोई नियन्त्रण नहीं होता उनके
प्रति सोच-सोचकर स्वयं को दुःखी न होने दें ।
क्षमा-भाव
रखें- परिवार-समाज व अपने सर्कल में सभी सम्बन्धित
लोगों का व्यवहार हमारे चाहे मुताबिक कभी नहीं हो सकता, यह
स्थिति जाने अनजाने हममें क्रोध व कई बार ईर्ष्या के भाव पैदा करती है जो अंततः
हमारे ही दुःख का कारण बनती है अतः क्षमा, सहानुभूति, सेवा
व शांतिप्रियता जैसे गुणों को अपनाकर हम न सिर्फ सबके प्रिय बने रह सकते हैं बल्कि
अपने अधिकांश कार्य अधिकतम सम्बन्धितों के सहयोग से कम समय व प्रयास में पूर्ण कर
सकते हैं ।
हँसते
रहें-हँसाते रहें- यह सर्वविदित सत्य है कि हँसते रहने से उपजी
प्रसन्नता के कारण हमारे शरीर की मांसपेशियां अधिक सबल व स्वस्थ होती हैं और इससे
स्वमेव ही हम रोगमुक्त भी होते हैं. इसीलिये हम अपने चारों ओर निरन्तर बढ रहे
हास्य क्लबों का विकास होते भी देख ही रहे हैं । अतः कामेडी फिल्में, जोक्स, चुटकुले, विनोदप्रिय
मित्रों की संगति व ऐसे सभी माध्यम जो हमें हँसने-हँसाने का मौका देते हों के
अधिकतम सम्पर्क में रहने का प्रयास करें, किन्तु
हँसते रहने के प्रयास में कभी किसी की हँसी उडाने का प्रयास न करें अन्यथा पांडवों
के महल में पानी से भरे कुँड को जब कारीगरों ने फर्श का आभास दिलाने जैसी कलाकारी
की और भ्रम में दुर्योधन उसमें गिर पडा तो हँसी उडाते हुए द्रोपदी ने मजाक में कह
दिया कि "अन्धे की औलाद अन्धी" तब बदले में दुर्योधन ने न सिर्फ भरी सभा
में उसी द्रोपदी का चीरहरण करवाकर उसे बेइज्जत किया बल्कि सब राज-पाट छोडकर सभी
पांडवों के साथ द्रोपदी को भी 13वर्षों तक जंगलों की खाक भी छाननी पडी थी । इसलिये
किसी की हँसी उडाने का प्रयास न करते हुए निरन्तर
हँसते रहने के अवसर तलाशते रहें ।
फिजूलखर्ची
से बचें- यह भी एक कारण है जो आगे-पीछे हमें दुःखों के
जाल में ढकेल सकता है । हमारी आमदनी चाहे जो हो किन्तु झूठी तडक-भडक व दिखावे में
पडकर हम किसी भी गैरजरुरी खर्च से यदि स्वयं को बचाते चलने का प्रयास करेंगे तो
आर्थिक कारणों से दुःखी होने की संभावना नहीं रहेगी । इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं
है कि हम कंजूस हो जावें, बल्कि जहाँ आवश्यक हो वहाँ बडे से बडे खर्च में
भी पीछे नहीं हटें किन्तु जहाँ आवश्यकता न हो वहाँ व्यर्थ के दिखावे या फिजूलखर्ची
से बचें ।
स्वयं
को समझदार साबित करने की कोशिश से बचें- हम
अपनी समझ के मुताबिक पर्याप्त समझदार हो सकते हैं शायद हों भी किन्तु
कई बार जब हम अपनी समझदारी के किस्से किसी के सामने बखान करने बैठ जाते हैं तो
सामने वाले के मन-मस्तिष्क में हमारी छबि खराब ही होती है जो आगे चलकर हमारे दुःख
का कारण बनती है । अतः अपने सयाने बुजुर्गों की यह सलाह भी गांठ बांधलें कि जो
सुख चाहे जीव को तो भोंदू बनके जी ।
तो
ये वे माध्यम हैं जो आपके-हमारे व किसी के भी जीवन को सुखपूर्वक गुजरवाने में
हमेशा मददगार साबित होते हैं । बाकि तो जीवन में सुखों की जो शास्त्रोक्त परिभाषा
है चलते-चलते हम उसे भी समझ ले-
पहला
सुख निरोगी काया, दूजा
सुख घर में हो माया,
तीसरा
सुख पतिव्रता नारी, चौथा
सुख पुत्र आज्ञाकारी,
पांचवां
सुख घर में सुवासा, छठा
सुख राज्य में पांसा,
और
सातवां सुख सन्तोषी जीवन ।
अब इनमें आप कितने सुखों से परिपूर्ण हैं यह तो आप ही बेहतर समझ
सकते हैं । मेरी भावना तो यही है कि--
सुखी
रहें सब जीव जगत के, कोई कभी न घबराए,
बैर-भाव, अभिमान
छो़डकर, नित्य नये मंगल गाएँ ।
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