केन्सर एक ऐसा जानलेवा रोग है जिसका
नाम भी सुन लेने मात्र से परिवार में सभी सदस्यों के चेहरों पर हवाईयां उडने लगती
हैं । डाक्टर जिसे भी यह बीमारी बता दे उसके अनेकों मित्र-परिचित तो ऐसे भी होते
हैं जो प्रायः उसी दिन से दुनिया में इसके शिकार मरीज की गिनती कम मानकर चलना
प्रारम्भ कर देते हैं । हमारे पांच फीट के आसपास के इन्सानी शरीर में इस बीमारी के
पचासों प्रकार देखने-सुनने में आते हैं और इस बीमारी के बारे में सर्वज्ञात तथ्य
यह माना जाता है कि एक बार यदि इसकी सर्जरी (आपरेशन) हो जावे तो शरीर में केन्सर
कोशिकाओं की वृद्धिदर लगभग चार गुना तक तेज हो जाती है, ऐसे में इसका सम्पूर्ण उपचार जिसमें
कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी को मुख्य रुप से गिना जा सकता है उनकी सायकिल को अधबीच
में छोड देना खतरे से खाली नहीं होता अतः इसके उपचार को जब भी चिकित्सकीय निर्देश
में प्रारम्भ किया जावे तो फिर तमाम जाँचें, सर्जरी, कीमोथैरेपी, रेडियोथैरेपी और सभी प्रकार की आवश्यक
दवाईयों के पूरे क्रम को फिर चाहे उसमें दस महिने लगें या फिर पन्द्रह या बीस माह
भी क्यों न लग जावें पूरा करने तक बीच में छोडने की गल्ति न करें ।
यदि कच्ची हल्दी उस समय बाजार में उपलब्ध न हो तब ? मसाले की पीसी हल्दी को आधा-आधा चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार शहद में मिलाकर चटवा दें या फिर सादे पानी से उसकी फांकी निगलवाते हुए एक सप्ताह बाद यह मात्रा एक-एक चम्मच तक पहुँचाकर एक माह बाद नए सिरे से जाँच करवाकर परिणामों के प्रति आश्वस्त हो लें ।
इसके अतिरिक्त- प्रतिदिन देशी गाय का गोमूत्र लाकर सूती कपडे (गल्ने) की आठवर्ता घडी कर उससे छान लें और आधा-आधा गिलास मात्रा में सुबह व शाम मरीज को दो माह तक नियमित रुप से पिलावें और दो माह बाद रोगी की जांच करवाकर सुधार के प्रति आश्वस्त हो लें ।
भुक्तभोगियों की बात यदि मानी जावे तो हल्दी व गौमूत्र के नियमित सेवन से केन्सर के किसी भी प्रकार के तीसरी स्टेज तक के रोगियों का जीवन बहुत समय तक सुरक्षित रुप से बचाया जा सकता है ।
निरन्तर बढती मँहगाई के चक्र
में यह बीमारी कई बार मरीज के परिवार को दर-दर का मोहताज बनाकर सडक पर भी ला देती
है । ऐसे में क्या करें जब हमारे पास इसका उपचार करवाने लायक लाखों रुपयों का
इन्तजाम न हो...
तब ध्यान रखें कि हल्दी का सेवन
केंसर के रोगियों के जीवन को बचाने में रामबाण साबित हुआ है । ब्रिटिश वैज्ञानिकों
का कहना है क़ि कीमोथेरेपी से अप्रभावित कोशिकाओं पर हल्दी का अभूतपूर्व प्रभाव
देखा गया है । लेचेस्टर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने हल्दी में पाई जानेवाले
रसायन "कर्कुमिन" के प्रभाव का अध्ययन कोलोरेक्टल केंसर के रोगी में
किया था । डॉ करेन ब्रौंउन ने डेली मेल को जानकारी देते हुए कहा क़ि- कर्कुमिन
केंसर क़ी उन कोशिकाओं के विरूद्ध काम करता है जो कोशिकाएं कीमोथेरेपी
के वावजूद बची रह जाती हैं तथा बाद में बढ़ते हुए विकराल रूप धारण कर लेती हैं । इससे पूर्व
के शोध में यह बात भी सामने आयी थी क़ी हल्दी न केवल केंसर क़ी कोशिकाओं क़ी वृद्धि
को रोकती है, अपितु
कीमोथेरेपी के प्रभाव को भी बढ़ा देती है । अतः-
सब्जी बाजार में कच्ची हल्दी
यदि उपलब्ध
हो तो उसकी गठान को पीसकर कपडे से निचोडकर उसका रस निकालें और दो-दो चम्मच यह रस
सुबह-शाम केंसर रोगी को एक माह तक नियमित पिलाकर फिर से उनके रोग की जाँच करवा लें
और लाभ दिखते रहने पर उपाय को आगे भी जारी रखें । किन्तु-
यदि कच्ची हल्दी उस समय बाजार में उपलब्ध न हो तब ? मसाले की पीसी हल्दी को आधा-आधा चम्मच की मात्रा में दिन में तीन बार शहद में मिलाकर चटवा दें या फिर सादे पानी से उसकी फांकी निगलवाते हुए एक सप्ताह बाद यह मात्रा एक-एक चम्मच तक पहुँचाकर एक माह बाद नए सिरे से जाँच करवाकर परिणामों के प्रति आश्वस्त हो लें ।
इसके अतिरिक्त- प्रतिदिन देशी गाय का गोमूत्र लाकर सूती कपडे (गल्ने) की आठवर्ता घडी कर उससे छान लें और आधा-आधा गिलास मात्रा में सुबह व शाम मरीज को दो माह तक नियमित रुप से पिलावें और दो माह बाद रोगी की जांच करवाकर सुधार के प्रति आश्वस्त हो लें ।
भुक्तभोगियों की बात यदि मानी जावे तो हल्दी व गौमूत्र के नियमित सेवन से केन्सर के किसी भी प्रकार के तीसरी स्टेज तक के रोगियों का जीवन बहुत समय तक सुरक्षित रुप से बचाया जा सकता है ।
जानकारी के लिए आभार आपको मेल डाली है कुछ प्रश्न है
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी जानकारी, आभार.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
upyogi jaankari ....
जवाब देंहटाएंmahila rog or banjpan pr v kuch post likne ka kast kere
जवाब देंहटाएंBahut hi upyogi jankari
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