शरीर में जब कूल्हे से लगाकर एडी तक दर्द की इतनी तेज लहर
उठती है जिसे व्यक्ति सहन नहीं कर पाता (और जहाँ हो जिस स्थिति में हो बैठना तब
मजबूरी बन जाता हो) लगता है जैसे पैर फट जाएगा । जांघ और पिंडली के पिछले हिस्से
में कूल्हे से नीचे तक एक नस होती है इसमें दर्द होने की स्थिति ही सायटिका कहलाती
है । प्राय: प्रभावित व्यक्ति बांए पैर में कमर से लेकर एड़ी तक एक नस में बहुत ही
तेज दर्द की उठती सी लहर जैसे बिजली चमकी हो ऐसा महसूस करता है । सामान्य धारणा के
मुताबिक आधुनिक एलोपेथी चिकित्सा में इसका कोई सरल उपचार नहीं दिखता जबकि इस रोग
से पीडित व्यक्ति ही इसकी भयावहता को महसूस कर पाता है । आयुर्वेद में इस रोग के
उपचार हेतु उपलब्ध जानकारी निम्नानुसार है-
निर्गुण्डी हरसिंगार का वृक्ष हरसिंगार के फूल
1. हरसिंगार का वृक्ष जिसे शैफाली, पारिजात या परजाता भी कहते हैं और
जिसमें छोटे सफेद फूल जिनके बीच में केशरिया छींटे दिखाई देते हैं (और बहुतायद से
ये फूल वर्षा ऋतु में दिखाई देते हैं) इसके ताजे 50 पत्ते और निर्गुण्डी के ताजे 50 पत्ते लाकर एक लीटर पानी में उबालें ।
जब पानी 750 मि. ली. रह
जावे तब उतारकर व छानकर इसमें एक ग्राम केसर मिलाकर इसे बाटल में भरलें । यह पानी
सुबह-शाम पौन कप मात्रा में दो सप्ताह तक पिएं और इसके साथ योगराज गुग्गल व
वातविध्वंसक वटी 1-1 गोली दोनों
समय लें । आवश्यकतानुसार इस उपचार को 40 से 45 दिनों तक करलें ।
अन्य उपचार-
2. एरण्ड के बीजों की पोटली बनालें व
इसे तवे पर गर्म करके जहाँ दर्द हो वहाँ सेंकने से दर्द दूर होता है ।
3. एक गिलास दूध तपेली में डालकर एक कप
पानी डाल दें और इसमें लहसुन की 6-7 कलियां काटकर डाल दें । फिर इसे इतना उबालें कि यह आधा रह जाए
फिर उतारकर ठण्डा करके पी लें । यह सायटिका की उत्तम दवा मानी जाती है ।
4. सायटिका के दर्द को दूर करने के लिये आधा कप गोमूत्र में डेढ कप केस्टर आईल (अरण्डी का तेल) मिलाकर सोते समय एक माह पीने से यह दुष्ट रोग चला जाता है ।
5. निर्गुण्डी के 100 ग्राम बीज साफ करके कूट-पीसकर बराबर मात्रा की 10 पुडिया बना लें । सूर्योदय से पहले आटे या रवे का हलवा बनाएँ और उसमें शुद्ध घी व गुड का प्रयोग करें, वेजीटेबल घी व शक्कर का नहीं । जितना हलवा खा सकें उतनी मात्रा में हलवा लेकर एक पुडिया का चूर्ण उसमें मिलाकर हलवा खा लें और फिर सो जाएँ । इसे खाकर पानी न पिएँ सिर्फ कुल्ला करके मुँह साफ करलें । दस पुडिया दस दिन में इस विधि से सेवन करने पर सायटिका, जोडों का दर्द, कमर व घुटनों का दर्द होना बन्द हो जाता है । इस अवधि में पेट साफ रखें व कब्ज न होने दें ।
6. गवारपाठे के लड्डू- सायटिका या किसी भी वात रोग को दूर करने के लिये ग्वारपाठे के लड्डू का सेवन करना बहुत लाभकारी होता है ।
लड्डू बनाने की विधि-
गेहूँ का मोटा दरदरा आटा 1 किलो, असगन्ध, शतावर, दारु हल्दी, आंबा हल्दी, विदारीकन्द, सफेद मूसली सब 50-50 ग्राम लेकर कूट पीसकर मिलालें ।
ग्वारपाठे का गूदा 250 ग्राम के करीब निकाललें व गूदे में सभी 6 दवाई और आटा मिलाकर अच्छी तरह मसलें ।
अब इसमें 250ग्राम घी
डालकर अच्छी तरह से मिलालें । जरा सा गर्म पानी डालकर मुट्ठे बनालें व घी में तलकर
बारीक कूटकर मोटी छन्नी से छानकर घी कढाई में डाल दें और हिला चलाकर छोडी देर तक
सेकें ताकि पानी का कुछ अंश यदि रह गया हो तो जल जाए । अब डेढ किलो शक्कर की चाशनी
बनालें । मुट्ठों की कुटी हुई सारी सामग्री को मोटे चल्ने से छानकर इसमें आवश्यक
मात्रा में घी डालकर चाशनी में डाल दें । जब जमने लगे तब 50-50 ग्राम वजन के लड्डू बनालें । इच्छा के
अनुसार बादाम, पिश्ता, घी में तला गोंद सब 50-50 ग्राम, केशर 2 ग्राम और छोटी इलायची 10 ग्राम डालकर लड्डू बनालें । सुबह व शाम 1-1 लड्डू खाकर उपर से मीठा कुनकुना गर्म
दूध पी लें । इसके बाद 3 घंटे तक
कुछ खाना पीना न करें । 45 दिन तक
नियमित रुप से यह लड्डू खाने से सायटिका (गृद्धसी) सहित अन्य सभी वात व्याधियां
(विशेषतः जोडों के दर्द से सम्बन्धित) दूर हो जाती हैं ।
आप हमेशा ही बहुत अच्छी जानकारियां देते हो बहुत बहुत धन्यवाद ............
जवाब देंहटाएंआयुर्वेद की परम्परा को यूँ की बढ़ाते रहना |
बहुत सुंदर जानकारी, मेरी बीबी की कलाई मे पिछले १५,२० दिनो से भयंकर दर्द चल रहा हे, जो हड्डी मे नही, हाथ के अंगुठे के पीछे जहां कलाई शुररु होती हे वहां हे, डा० को दिखा दिया, इलाज चल रहा हे, लेकिन आराम नही आया, डा० का कहना हे कि एक महीना लगेगा, आप कुछ बताये?
जवाब देंहटाएंBeautiful and informative post.
जवाब देंहटाएंThanks.